musafir of india
relentless thinker
Monday, June 20, 2011
New poetry - 8
डगर न जाने चल पड़े बेगाने दुनिया में
मुश्किल है मगर नामुमकिन नहीं
यादों की मज्म के सिवाय रखा क्या है
ये कलाम तो फितरत की तोहफा ही सही
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