musafir of india
relentless thinker
Monday, June 13, 2011
New poetry - 7
अजनबी बनके इस दुनिया में
खोज रहे है सभी अपने मंजिल को
कौन कहाँ सैर कर रहा है किसको पता
कोई किनारे पे भटक रहा है मजरूह होके
कोई बह रहा है झरनों की तेज धारा में
आकिबत किसको क्या मिला कौन जाने
तसल्ली वही जो हकीकत बख्शीश दे
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